पाली भूपेन्द्र सिंह द्वारा रचित रॉंग नंबर एक गहन और बहुस्तरीय हिंदी नाटक है, जो मूल रूप से पंजाबी में लिखा गया है। यह नाटक एक अपाहिज व्यक्ति 'मानव' के अकेलेपन, टूटते रिश्तों और अस्तित्व की जद्दोजहद को केंद्र में रखता है। सत्या, कल्पना, संभव और आकाश जैसे पात्रों के माध्यम से लेखक ने जीवन की विडंबनाओं, भावनात्मक उलझनों और सामाजिक असंवेदनशीलता को उजागर किया है। संवादों में दार्शनिकता और चुटीला व्यंग्य है, जो दर्शकों को भीतर तक झकझोरता है। मंचीय निर्देशों और प्रतीकों का प्रयोग इसे एक गूढ़ और प्रभावशाली नाट्य अनुभव बनाता है।
इस नाटक की सबसे विशिष्ट बात है गुरु और चेला की उपस्थिति—जो समाज की खोखली नैतिकता, पुरुष-प्रधान मानसिकता और रिश्तों की चालाकी पर तीखा कटाक्ष करते हैं। उनकी बातचीत में नारीवाद, सेक्स-स्ट्रैटेजी और सामाजिक मर्यादा जैसे विषयों पर तीखी बहस होती है, जो हास्य और असहजता दोनों पैदा करती है। रॉंग नंबर केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक यात्रा है—जहाँ हर दृश्य और हर संवाद एक गूढ़ सवाल खड़ा करता है: क्या हम सच में ज़िंदा हैं, या सिर्फ जीने की आदत निभा रहे हैं?